नमस्कार और् वापस स्वागत है।
हम सभी ने मेडिटेशन के बारे मे खूब सुना है, और हम में से बहुत लोग तो मेडिटेशन की गूढ़ अवस्था का अनुभव भी कर चुके है तथा पांचवे आयाम की भी यात्रा कर चुके है।
आज कल की भाग दौड़ भरी जिन्दगी, मानसिक तनाव आदि के बढ़ते हुए प्रसंगो या मामलों की वजह से आज पूरे विश्व मेंं मेडिटेशन लोकप्रिय है। और मानसिक तनाव व बिमारियों से निज़ात पाने के लिये हम मे से लगभग सभी ने कभी ना कभी मेडिटेशन किया है या करने की कोशिश की है।
अपनी लोकप्रियता के बावजूद, आज हम में से बहुत कम लोग वास्तव में जानते हैं कि सही मेडिटेशन क्या है।
कुछ लोग इसका सम्बन्ध मानसिक एकाग्रता से लेते है और कुछ के विचार है कि मेडिटेशन हमें शांति या संतुष्टि देता है। कुछ् लोगों का मानना है कि मेडिटेशन से शरीर के उर्जा चक्र सक्रिय होते हैं या कुंडिलिनी जागरण होता है।
हम सभी बुद्धिजीवी व पढे लिखे लोग चीज़ों को तर्किक ढंग से और पुर्ण रूप से जानना चाहते हैं और अपनी विवेक बुद्धि को संतुष्ट करना चाहते है। लेकिन हम सभी बुद्धिजीवी व पढे लिखे सत्य के खोजीयों, या यूं कहे की जिज्ञासुओं के लिये मेडिटेशन की कोइ ऐसी व्याख्या या स्पष्टीकरण मौजूद नही है जिससे हम लोगों की विवेक बुद्धि संतुष्ट हो पाये। हमें मेडिटेशन के बारे मे सब कुछ मालूम होना चाहिये।
तो दोस्तो आज हम मेडिटेशन को उसके पुर्ण व सही रूप मे जानेंगे।
मेडिटेशन
आम भाषा मे मेडिटेशन का मतलब "आंख बन्द कर के" एक सहज आसन में बैठ कर अपने ध्यान को शून्य मे टिकाने से है जिससे कुछ मानसिक शांति, प्रसन्नता संतुष्टि जरूर मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस मानसिक शांति, प्रसन्नता संतुष्टि आदि के उद्देश्य को लेकर आप मेडिटेशन करते हैं वो उस वस्तु के मुकाबले एक धूल का कण ही है जो मेडिटेशन से असल मेंं हमें मिल सकती है?
मेडिटेशन या ध्यान आत्मा का स्वभाव है और इसके लिये इसे अलग से कुछ सीखने की कोइ आवश्यक्ता नही है।समझने के लिये निम्नलिखित पर "ध्यान दें":
"Quote
“फोकस” या “ध्यान”:आत्मा की केवल एक ही विशेषता है "फोकस" या ध्यान। आत्मा भौतिक दुनिया में या 5वें आयाम में केवल "ध्यान केंद्रित" करके काम करती है। आत्मा किसी वस्तु पर ध्यान करती है और उस वस्तु के अलावा यह बाकि चीज़ें भूल जाती है।
जैसे आप अभी यह लेख पढ़ रहे हो आपका ध्यान यहां है और आप अपनी सासों को भूले हुए हो,
ऐसे ही जब आपका ध्यान अपनी सांसो पर है तो जो आस पास शोर हो रहा हो आप उसको भूल गये
लेकिन अब याद दिलाने पर याद आ गया।
Unquote"
तो आत्मा हर समय ध्यान करती रहती है और सब काम "ध्यान" से ही करती है! हम भी अपनी आम भाषा मे कहते है कि "काम ध्यान से करो" "गाड़ी ध्यान से चलाओ" "भाई ध्यान कहाँ है?"
कहाँ खो गये?? कृप्या ध्यान दें!!!
तो फिज़ीकली हम कहीं भी हों पर असल में हम वहाँ नही होते, हम तो वहाँ होते हैं जहां हमारा ध्यान होता है।
अगर इसको हम और अच्छे से कहें " हम वहाँ होते हैं जहाँ हमारी आत्मा का ध्यान होता है"।
असल मे जो सही वाक्य है वो ये है कि "हमारा शरीर कहीँ भी हो लेकिन हम, यानि एक आत्मा, वहाँ होते हैं जहाँ हमारा ध्यान होता है"
क्या ये सरल है??
इसको और सरल बनाते हैं: असल मे शरीर न तो कुछ करता है और न ही कुछ कर सकता है। जो कुछ भी करती है वो आत्मा ही करती है और आत्मा ध्यान के जरिये ही सब कुछ करती है।
मेडिटेशन या ध्यान आत्मा का स्वभाव है और इसके लिये इसे अलग से कुछ सीखने की कोइ आवश्यक्ता नही है।
ध्यान की दो विशेषताएं
ध्यान की पहली विशेषता
त्राटक: मोमबत्ती की लौ पर ध्यान टिकाना |
नाक के अग्र भाग पर ध्यान करना |
ध्यान की दूसरी विशेषता
आंखों से ऊपर अन्दर ध्यान् |
सम्मोहन चिकित्सा |
हमारे ध्यान की इसी दूसरी विशेषता के कारण जादूगर, जेब-कतरे, ठग और नकली तांत्रिक लोगों को मूर्ख बनाते हैं और ठगते हैं। और हमारे ध्यान की इसी विशेषता के कारण सम्मोहन-कर्ता हमें सम्मोहित कर पाते हैं सम्मोहन चिकित्सा हो पाती है और हमारे ध्यान कि इसी विशेषता कि वजह से हम आत्मिक अनुभव कर पाते हैं।
तो दोस्तो दो तरह के ध्यान
1) "Present" यानी वर्तमान मे, शरीर के ऊपर या किसी बाहरी वस्तु पर ध्यान। शरीर का साथ आवश्यक है; शारीरिक ध्यान और
2) "Past" or "Future" यानी भविष्य में या भूतकाल में किसी कल्पना पर या शरीर के अन्दर का ध्यान जिसके लिये शरीर की कोइ आवश्यक्ता नहीं है। (मानसिक या आत्मिक ध्यान)
पहली तरह के ध्यान मे गूढता आने से दूनिया के हर काम मे सफलता मिलती है।
दूसरी तरह के ध्यान मे गूढता आने से बहुत कुछ होता है जिनमे ये चीज़े शामिल हैं: कल्प्ना शक्ति मे वृद्धि, ,
अविष्कार होते हैं, आत्मिक उन्नति होती है; चक्र, कुंडिलिनी जाग्रत होती है, मानसिक शांति मिलती है, पिनियल ग्रंथि पर आत्मा का सिम्टाव होता है और तीसरी आंख सक्रिय होती है, मोक्ष और परमात्मा की प्राप्ती भी होती है।
अगर आपका ध्यान केन्द्रित नहीं है तो असफलता, निराशा, दुख, पागलपन, भ्रम, दिमागी बीमारियाँ इत्यादी घेर लेती हैं।
तो नि:स्न्देह, मेडिटेशन का मतलब ध्यान ही है। जब भी हम किसी चीज़ पर Attention देते है इसका मतलब है कि आप उस वस्तु पर ध्यान दे रहो हो और मेडिटेशन कर रहे हो।
मेडिटेशन या ध्यान आत्मा का स्वभाव है और इसके लिये इसे अलग से कुछ सीखने की कोइ आवश्यक्ता नही है।
क्या हम मेडिटेशन गलत कर रहें हैं???
"हमें कुछ मानसिक शांति, प्रसन्नता या संतुष्टि इसलिये मिलती है क्युंकि हम मेडिटेशन गलत ढंग से कर रहे हैं"बिल्कुल ठीक पढ़ा "हमें कुछ मानसिक शांति, प्रसन्नता या संतुष्टि इसलिये मिलती है क्युंकि हम मेडिटेशन गलत ढंग से कर रहे हैं" वजह? क्युंकि जिस मानसिक शांति, प्रसन्नता संतुष्टि आदि के उद्देश्य को लेकर आप मेडिटेशन करते हैं वो उस वस्तु के मुकाबले एक धूल का कण ही है जो मेडिटेशन से असल मेंं हमें मिल सकती है?
अगर आप को मेडिटेशन करते हुए दो साल से अधिक हो गये हैं और आपको निम्नलिखित में से किसी एक का भी अनुभव नही हुआ है तो आप निसन्देह गलत ढंग से मेडिटेशन कर रहे हैं ।
शब्द का सुनना
उर्जा चक्र खुलना
कुंडिलिनी जागरण
पिनियल ग्रंथि में एकाग्र् आत्मा
आत्म बोध होना
5 वें आयाम में यात्रा
क्राउन या सहस्रार चक्र तक का सफर्
छोटी अवधी का मोक्ष
कर्मों के ढेर का नाश
आत्मा के परमात्मा से सम्बध का ज्ञान
अंतिम मोक्ष
भगवद प्राप्ति
भगवान के साथ एकाकार
"आत्मा ही ईश्वर है" का अनुभव
(उपरोक्त् बात शब्द मार्गी पुर्ण गुरू से दीक्षा प्राप्त लोगो पर लागू नहीं होती क्युंकी उनकी उन्नति उनके गुरू के आदेश से होती है)
समाप्त करते हुए :
1) हमें मेडिटेशन के बारे मे सब कुछ मालूम होना चाहिये।
2) मेडिटेशन या ध्यान आत्मा का स्वभाव है और इसके लिये इसे अलग से कुछ सीखने की कोइ आवश्यक्ता नही है।
3) आत्मा भौतिक दुनिया में या 5वें आयाम में केवल "ध्यान केंद्रित" करके काम करती है।
4) आत्मा हर समय ध्यान करती रहती है और सब काम "ध्यान" से ही करती है।
5) "हमारा शरीर कहीँ भी हो लेकिन हम, यानि एक आत्मा, वहाँ होते हैं जहाँ हमारा ध्यान होता है"।
6) जब भी हम किसी चीज़ पर Attention देते है इसका मतलब है कि आप उस वस्तु पर ध्यान दे रहो हो और मेडिटेशन कर रहे हो।
7) दो तरह के ध्यान
- A) "Present" यानी वर्तमान मे, शरीर के ऊपर या किसी बाहरी वस्तु पर ध्यान। शरीर का साथ आवश्यक है; (शारीरिक ध्यान) और
- B) "Past" or "Future" यानी भविष्य में या भूतकाल में किसी कल्पना पर या शरीर के अन्दर का ध्यान जिसके लिये शरीर की कोइ आवश्यक्ता नहीं है। (मानसिक या आत्मिक ध्यान)
8) अगर आपका ध्यान केन्द्रित नहीं है तो असफलता, निराशा, दुख, पागलपन, भ्रम, दिमागी बीमारियाँ इत्यादी घेर लेती हैं।
9) आत्मिक ध्यान के द्वारा परमात्मा और मोक्ष की प्राप्ती की जा सकती है ।
तो दोस्तो सही मेडिटेशन का सही तरीका क्या है और मेडिटेशन किस का करना है? वो आगे आने वाली पोस्ट्स में।
मेडिटेशन या ध्यान का पुरा ब्लु प्रिंट मेरी अगली पोस्ट में। आप को ऐसी चीज़ें जानने को मिलेंगी जो आपको अभिभूत कर के रख देंगी। जिसमें ध्यान के फैले होने और एकाग्रता से होने वाले असर के बारे मे जानने को मिलेगा Click here ।
Urs Truly
Satya
Sabka mangal ho.☺
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