Wednesday, 27 July 2016

परफेक्ट मैडिटेशन का स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस। ये जानना आपका हक़ है !

 नमस्कार दोस्तों, आप सभी का स्वागत है।


जब ध्यान की ठीक प्रक्रिया अपनाई जाये तो सबसे पहले पैर सुन्न होना शुरू जाते है। यह इस बात का सूचक है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे है।

सही दिशा इसलिए क्योंकि पूर्ण अंतर्मुखी ध्यान का उद्देश्य अपनी आत्मा या चेतना को पूर्ण रूप से पिनियल ग्रंथि पर इकठ्ठा या कंसंट्रेट करना है। ताकि हम "तीसरी या सिंगल आई"के द्वारा पांचवे आयाम में देख सके और यात्रा कर सके। यह पूर्ण तब होता है जब शरीर पूरा सुन्न हो जाये।


सही ढंग से किये गए अंतर्मुखी ध्यान में सबसे पहले पैरों के तलवे सुन्न होते है फिर टखने तक और फिर, घुटने तक शरीर सुन्न हो जाता है।

ध्यान का और समय बढ़ाने पर पैर और कमर सुन्न हो जाते हैं सबसे आखिर में धीरे धीरे बाकी का शरीर भी सुन्न जो जाता है और आत्मा सिमट कर पीनियल ग्रंथि पर इकठ्ठी हो जाती है।

पीनियल ग्रंथि पर आत्मा के इकट्ठा होते ही आत्मा के मानव शरीर में आने का उद्देश्य पूरा हो जाता है। आत्मा के खुद के ज्ञान में यह बात अपने आप आ जाती है कि वह शरीर से अलग कुछ अन्य ही पदार्थ है जो खुद ही अंतहीन है और जीवन मृत्यू जैसी कोई चीज़ नहीं होती। आत्मा स्वयं ही समझ जाती है की यह शरीर उसे एक वरदान के रूम में में मिला था और पीनियल ग्रंथी पर इक्कट्ठा होकर आगे की यात्रा करना ही उसका एक मात्र उद्देश्य था।

क्योंकि आत्मा सिर्फ और सिर्फ मानव शरीर में यह कार्य कर सकती है। इसीलिए मानव शरीर को सृष्टि की उत्कृष्ट रचना कहा जाता है।

लेकिन इस अवस्था यानि पुर्ण अंतर्मुखी ध्यान् तक पहुंचने का सही तरीका क्या है ?? आइये जानते हैं।

इस अवस्था के लिए मुझे संत कबीर का एक दोहा याद आता है:


"तन थिर, मन थिर, बचन थिर, सुरत निरत थिर होये,

कहे कबीर उस पल का भेद न पाए कोये।"


इस दोहे में संत कबीर ने पूर्ण अंतर्मुखी ध्यान मैडिटेशन के स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस को खोल कर रख दिया है।

स्टेप 1: तन स्थिर
स्टेप 2: मन स्थिर
स्टेप 3: वचन स्थिर
स्टेप 4: सुरत स्थिर
स्टेप 5: निरत स्थिर

अगर समझने वाला गंभीर हो तो समझना बहुत आसान है और समझने के बाद इसे प्रैक्टिस में लाना और खुद अनुभव करना बहुत ही आसान है।

चलिए आगे डिटेल में समझते हैं।


पूर्ण अंतर्मुखी ध्यान का स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस


स्टेप 1: तन स्थिर


    पूर्ण अंतर्मुखी ध्यान करने का यह पहला स्टेप है। शरीर को किसी भी एक स्थिर आसान में लाना। यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि यह आसन कोई भी हो सकता है। जरुरी नहीं की यह आसन पद्मासन हो या शरीर को कष्ट देने वाला कोई और पेचीदा आसान हो। जरुरी सिर्फ इतना है कि शरीर किसी ऐसी अवस्था में हो जिसमें यह स्थिर रह सके। क्योंकि जब शरीर स्थिर होता है तो यह धीरे धीरे सुन्न होने लगता है। यह तब ही हो सकता है जब आसन आसान हो। भारत में शुरू से ही लोगों की जमीन पर पद्मासन में बैठ कर ही सभी कार्य करने की आदत रही है। भोजन बनाना व् खाना, चौपड़ शतरंज इत्यादि खेलना, पंचायत, हवन व् यज्ञ, शिक्षा और लगभग  सभी महत्वपूर्ण कार्य जैसे , शादी विवाह के विधि विधान और संस्कार इत्यादि सभी कार्य जमीन पर बैठकर ही किये जाते रहे हैं हालाँकि मॉडर्नाइजेशन के बाद थोड़े हालात बदल गए हैं। तो भारत के लोगो के लिए एक ही आसन सबसे आसान है वह है पद्मासन। मैडिटेशन के लिए ऐसा आसन होना चाहिए जिसमे आप सबसे ज्यादा कम्फ़र्टेबल हो और आदत हो।  इसलिए भारत के लोगो के लिए पद्मासन से आसान आसन हो ही नहीं सकता। इस आसन में बैठने की आदत है और इसलिए आप ज्यादा देर तक स्थिर रह सकते है।

    अगर आप शारीरिक रूप से पद्मासन में बैठने में असमर्थ हैं तो क्या आप मैडिटेशन नहीं कर सकते? बिलकुल कर सकते हैं। शर्त स्थिर रहने की है खास आसान की नहीं। अगर आप कुर्सी पर बैठ कर भी मेडिटेशन् करना चाहें कर सकते है।

    आप जिस भी आसन में शरीर को बिना कष्ट दिए ज्यादा से ज्यादा देर तक स्थिर रख सकें वो ही आपके लिए उत्तम आसन है।

    स्टेप 2: मन स्थिर

    जैसे ही आप तन को स्थिर करने के आसन में बैठ गए आप को अपने मन को स्थिर करना शुरू करना है।

    मन को स्थिर करने से मतलब यह नहीं है की आपने अपने मन की इच्छाओं को मारना है। अगर आपने मन की इच्छाओं को मारा तो यह कभी भी स्थिर नहीं होगा। मन को स्थिर करने से तात्पर्य शून्य में झांकने से भी नहीं है। मन को शुन्य करना असंभव है। शुन्य मन जैसी कोई अवस्था नहीं होती। यह अधूरी जानकारी, अधूरे अनुभव व् अधूरे ज्ञान वाले कुछ "ज्यादा समझदार" लोगों के मन की कल्पना है। मन को स्थिर करने से तात्पर्य है कि किसी एक ही खास विचार पर खास तरीके से स्थिर करना। समझने के लिये आगे पढते रहिये।  


    आपको पहले यह समझ लेना चाहिए की जैसे गिलास और पानी का संबंध है उसी तरह शरीर और मन का संबंध है। अगर पानी से भरे गिलास को हिलाते रहेंगे तो पानी भी हिलता रहेगा। अगर आपने पानी के गिलास को एक जगह स्थिर रख दिया तो पानी थोड़ी देर तक हिलता रहेगा फिर वह भी स्थिर होने लगेगा। जैसे ही आपने गिलास फिर से हिलाया पानी भी फिर से हिल जायेगा।

    इसी तरह शरीर को हिलाते रहेंगे तो मन कभी भी स्थिर नहीं होगा। पहले शरीर स्थिर होगा फिर मन स्थिर होगा।







    Urs Truly,

    Satya


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